नमकीन जल
गिरी शिखरों पर हिम बरसा ,खूब घना ,
शिखरों पर हिम की पर्त चढ़ी ,खूब घनी ,
शीशे से शिखर चमक उठे ,
रवि - किरणों ने उन्हें चमकाया ,
साथ ही गर्मी से पिघलाया ,
एक धार बनी ,उतर चली ,शिखर से नीचे को |
आस -पास के शिखरों से भी ,जल धार उतर चलीं ,
उतरते हुए मिलीं धाराएँ ,बनी बड़ी जलधार ,
नाम मिला नदिया ,नदिया का वेग बढ़ चला ,
उछलती ,कूदती पहुँची ,नीचे मैदानी क्षेत्र में |
अपने किनारों पर ,हरियाली फैलाती ,
भूमि उपजाऊ बनाती ,मधुर संगीत सुनाती ,
जल - जीवों को आश्रय देती ,नदिया दौड़ चली |
मानव ने नदिया के जल का ,उपयोग खूब किया ,
उसे माता कहकर ,पूजा ,अर्चना की ,
दौड़ते -दौड़ते नदिया ,सागर तक पहुँच गई ,
और झट से सागर में समा गया |
सागर से मिल ,नदिया का मीठा जल भी ,
नमकीन हो गया ,नमकीन हो गया ,
हाय रे ,पीने लायक नहीं रह गया ,
सागर वो मीठापन तूने क्या किया ?
तूने किसको दिया वो मीठापन ?
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