अपना पर्यावरण
आज खड़ी है एक आत्मा ,मानव की नजरों के सामने ,
कह रही है रो -रोकर ,मानव ये क्या किया है तूने ?
मैंने तुझे जन्म दिया ,पाला -पोसा आराम दिया ,
पर तूने मानव आज तो मुझको ही बर्बाद किया |
क्यों जंगल काटे ,क्यों हरी -भरी धरा को ,
बंजर तूने बना दिया ,
धरा जो सब कुछ देती तुझको ,
उसी को नेस्तोनाबूत किया ,
पानी तेरी खास जरूरत ,उसके बिना तू जिए नहीं ,
पर उसी पानी को तूने मानव ,पीने योग्य नहीं छोड़ा |
पेड़ तुझे साँसे देते ,साँसों से चलता जीवन ,
उन्हीं पेड़ों को मानव तूने ,उखाड़ फेंका जड़ से ही ,
दूषित हवा क्या जीवन देगी जीवन ,सोच ले मानव फिर एक बार ,
ऐसा करने से क्या तेरे ,जीवन में आएगी बहार |
आज महामारी जो फैली ,रोक नहीं उसको पाया ,
मैं हूँ पर्यावरण की आत्मा ,मुझे तो तूने क़त्ल किया ,
कब समझेगा तू मानव ,अपनी बर्बादी लिखता है ,
आँखें होते हुए भी मानव ,तुझको कुछ ना दिखता है ,
मैं मागूँ किस्से इंसाफ ,कौन करेगा मेरा इंसाफ ?
क्या तू मानव अपना पर्यावरण ,कर पाएगा फिर से साफ ?
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