Sunday, August 23, 2020

EK ANJANA AADMI ( SHO STO )

             आदमी अन्जाना 


एक है आहट अन्जानी सी ,नहीं है वो पहचानी सी ,

रुक -रुक कर आती है पास ,कभी -कभी जाती है दूर ,

कौन है जो आता भी है ,कभी दूर जाता भी है ?

क्या घबराता है आने से ,फिर क्यों वह जाता है दूर ?


कदम चाप है धीमे से , तेज नहीं वह होती है ,

कौन है वह अन्जाना ,हिम्मत जिसे ना होती है ?

सूर्य अस्त हो चुका पश्चिम में ,धूमिल सी रौशनी है ,

ऐसे में धुँधला सा साया ,पहचान ना जिसकी होती है |


रुकता कभी ,कभी चलता ,देख रहा वो इधर -उधर ,

जाने क्या ढूँढ रही है ,उसकी वो अन्जान नजर ?

चेहरे पर क्या भाव उजागर ,कुछ कैसे समझ में आएगा ?

इस धुँधलके में तो मित्रों ,आता नहीं है कुछ नजर |


तभी आया पास वो मेरे ,अब तो उसकी सूरत दिखी ,

पर यह तो अन्जाना था मित्रों ,पहले नहीं ये सूरत देखी ,

कैसे जानूँ ,कौन है वो ,क्या हम पहले मिले कभी ?

उसने दिया अपना परिचय ----मैं हूँ तुम्हारी प्रतिलिपि |







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