आदमी अन्जाना
एक है आहट अन्जानी सी ,नहीं है वो पहचानी सी ,
रुक -रुक कर आती है पास ,कभी -कभी जाती है दूर ,
कौन है जो आता भी है ,कभी दूर जाता भी है ?
क्या घबराता है आने से ,फिर क्यों वह जाता है दूर ?
कदम चाप है धीमे से , तेज नहीं वह होती है ,
कौन है वह अन्जाना ,हिम्मत जिसे ना होती है ?
सूर्य अस्त हो चुका पश्चिम में ,धूमिल सी रौशनी है ,
ऐसे में धुँधला सा साया ,पहचान ना जिसकी होती है |
रुकता कभी ,कभी चलता ,देख रहा वो इधर -उधर ,
जाने क्या ढूँढ रही है ,उसकी वो अन्जान नजर ?
चेहरे पर क्या भाव उजागर ,कुछ कैसे समझ में आएगा ?
इस धुँधलके में तो मित्रों ,आता नहीं है कुछ नजर |
तभी आया पास वो मेरे ,अब तो उसकी सूरत दिखी ,
पर यह तो अन्जाना था मित्रों ,पहले नहीं ये सूरत देखी ,
कैसे जानूँ ,कौन है वो ,क्या हम पहले मिले कभी ?
उसने दिया अपना परिचय ----मैं हूँ तुम्हारी प्रतिलिपि |
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