मेरा क्या कसूर था ?
दलदल बनी कसूरों की ,हर कोई ना उसमें फंस पाया ,
जीवन संग्राम बना सबका ,हर कोई ना उसके पार गया ,
जो फंसा है दलदल में बंधु ,वो निकल ना उससे पाया ,
मदद -मदद चिल्लाता रहा ,पर मददगार ना कोई पाया |
क्या था कसूर उसका बंधु ?ये समझ में उसकी ना आया ,
दूजा कोई बतलाए क्या ?मदद का हाथ बढ़ाए क्या ?
कैसे कोई मदद करे ?ये समझ ना दूजे को आया ,
दलदल ने उसे कैसे घेरा ?ये समझ नहीं कोई पाया |
प्रकृति आज विनाशित है ,इसके कसूरवार सब हैं ,
हम और आप सभी जन तो ,कसूरवार तो सभी हैं ,
पर कैसे बचाएँ हम अपनी ? प्यारी सी इस दुनिया को ,
जिसे विनाशित किया लाखों वर्षों से ,
क्या दो दिन में बच जाएगी ?
क्या आदम युग में पहुंचें हम ?
सब साधन सुख के त्याग करें ,
पर सब कुछ ना बदलेगा अब ,लाखों ही वर्ष लगाने हैं ,
कसूरवार तो एक नहीं ,सब मानव ही हैं कसूरवार ,
और हम तुम भी मानव हैं बंधु ,
सभी हैं इसके भागीदार |
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