नियम ना तोड़ो
मानवता है प्रेयसी हमारी ,हम दीवाने हैं इसके ,
हमने और कुछ नहीं चाहा ,इसके प्यार में पड़के ,
सभी देश ,सभी भाषा ,सभी विचार ,सभी लोग ,
हमारे लिए हैं पूजनीय ,काबिल हैं प्यार के |
प्रकृति के अपमान ने ,आज संकट को आमंत्रण दिया ,
तभी तो प्रकृति बिगड़ गई ,क्रोध उसको आ गया ,
क्यों मानव तूने ऐसा ,काम ही कुछ क्यों किया ?
जिसके कारण प्रकृति को ,क्रोध इतना आ गया |
बदरा ने क्रोध में ,इतना पानी बरसा दिया ,
नदियों के अंदर मानो ,गहरा तूफ़ान आ गया ,
बाँध भी अब टूट गए ,पानी भी अब बढ़ चला ,
मानव ने डरकर कहा ,देखो बाढ़ आ गई |
बाढ़ में डूबा है मानव ,अस्त ,व्यस्त ,त्रस्त है ,
मगर ऐसे में भी मानव ,अपने में ही मस्त है ,
प्रकृति को दोष देता है वो ,अपना दोष नहीं देखे ,
प्रकृति तो आज भी ,होती उससे ध्वस्त है |
आज फैली महामारी से ,आज मानव त्रस्त है ,
दूसरों को दोष देता ,अपने दोष नहीं गिनवाता ,
नियम बनाए जो प्रकृति ने ,उनका पालन नहीं किया ,
नियमों की बाड़ में रहता तो ,आज ये हालत ना होती ,
मानवता के लिए हमारी ,आँखें आज नहीं रोतीं ,
इस इश्क के लिए हमारी ,आँखें आज नहीं रोतीं |
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