होली मनायी
सोई तब मैं बाँहों में ,छेड़ दिया साजन ने ,
खोई थी मैं सपनों में ,छेड़ दिया साजन ने |
ना जाने क्या उसने पिलाया ?
जरा भी तो होश ना आया ,
पर ना जानूँ क्या मन उसके आई ?
उसने मुझको छेड़ जगाया ,
तब भी थी मैं बाँहों में ,छेड़ दिया साजन ने |
आँखें खोलीं तो दिल धड़का ,
आईना था हाथों में ,
एक नज़र जो देखा उसमें ,
डूबी थी मैं रंगों में ,
ऐसी होली मनायी रातों में ,छेड़ दिया साजन ने |
No comments:
Post a Comment