क्या कहूँ ?
कुछ कहने की आरजू में ,
चुप रहने की जुस्तजू में ,
बीत जाएँगे यूँ ही दिन ,
तुमको पाने के ही ख्यालों में |
जो कुछ भी मैं कह बैठी ,
तुमको कुछ ज्यादा ही खो बैठी ,
तुमने क्या बेवफा खा मुझको ?
मैं खुद से ही बेवफा हो बैठी |
वो सारी बातें जो बीत गईं ,
करेंगी सारी उम्र भर पीछा ,
चाहे कितना उन्हें भुलाऊँ मैं ?
पर फिर भी ना भूल पाऊँगी |
दिल जो खुशियों में डूबा रहता था ,
अब वो ख़ुशी को भूल गया ,
किस तरह वो हँसेगा फिर से ?
उसका साथी उसे जो भूल गया |
नहीं हैं शब्द मेरे पास ,
जो आगे कुछ लिखूँ मैं ,
मेरे प्रीतम तुम्हीं बोलो ,
तुम्हें अब क्या और कहूँ मैं ?
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