अलबेले नीड़
उड़ चले हैं पंछी नील गगन में ,
प्यार के गीत गुनगुनाते हुए ,
गगन ने उनको भरा अपनी बाँहों में ,
प्यार से मुस्कुराते हुए |
अपना नीड़ बसाएँगे वो पंछी ,
किसी प्यारी सी अनजानी जगह में ,
जहाँ हों नवांकुरों की खुश्बुएँ ,
गीत सुनाई दें नदियों की कल -कल में |
आज के नवांकुर देंगे कल ,
फूलों की सुंदर बगिया ,
तभी तो पंछियों का कलरव भी ,
मिलाएँगे सुर ,गुनगुनाएगी नदिया |
गगन और धरा दोनों ही ,
देखेंगे उस नीड़ को ,
खुश हो जाएँगे पंछियों के ,
देख कर उस अलबेले नीड़ को |
हम भी ढूँढें एक ऐसी ,अनजानी जगह ,
जो डूबी हो फूलों की ख़ुश्बुओं में ,
जो किनारे हो किसी कल -कल करती नदिया के ,
जो भर दे गुनगुनाहट हमारे दिलों में |
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