Saturday, July 17, 2021

KHULI KHIDKIYAN ( JIVAN )

 

       खुली खिड़कियाँ 

 

चलो साजना कहीं दूर , दूर कहीं ,

दूर बहुत ही , दूर कहीं ,

जहाँ बंद घर ना हों ,

बंद खिड़कियाँ ना हों | 

 

ऐसे शहर में जहाँ ,

घर हों खिड़कियों वाले ,

छोटी - बड़ी खिड़कियाँ वहाँ ,

जिनसे शहर का नजारा दिखाई दे ,

खुला आसमान ,खुली राहें ,

सभी कुछ उनसे दिखाई दे | 

 

खुलें खिड़कियाँ तो ,

धूप छन से आ चमके ,

उनसे हवा के झोंके ,

हक से आ धमकें ,

कलैंडर भी कमरे की दीवार ,

छोड़ फर्श पे लटकें | 


डाकिया दोस्तों के खत ,

खिड़कियों से पहुँचा जाए ,

हम भी खत देख के ,

धीमे से मुस्का जाएँ ,

उन खतों को पाकर तो ,

धीमी सी रोशनी मन में उतर जाए | 



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