खुली खिड़कियाँ
चलो साजना कहीं दूर , दूर कहीं ,
दूर बहुत ही , दूर कहीं ,
जहाँ बंद घर ना हों ,
बंद खिड़कियाँ ना हों |
ऐसे शहर में जहाँ ,
घर हों खिड़कियों वाले ,
छोटी - बड़ी खिड़कियाँ वहाँ ,
जिनसे शहर का नजारा दिखाई दे ,
खुला आसमान ,खुली राहें ,
सभी कुछ उनसे दिखाई दे |
खुलें खिड़कियाँ तो ,
धूप छन से आ चमके ,
उनसे हवा के झोंके ,
हक से आ धमकें ,
कलैंडर भी कमरे की दीवार ,
छोड़ फर्श पे लटकें |
डाकिया दोस्तों के खत ,
खिड़कियों से पहुँचा जाए ,
हम भी खत देख के ,
धीमे से मुस्का जाएँ ,
उन खतों को पाकर तो ,
धीमी सी रोशनी मन में उतर जाए |
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