जन्म दाता सागर
सागर में जब उपजा जीवन ,तभी तो हम सब आए यहाँ ,
ये सागर है ,जन्म दाता हमारा ,इसने ही तो सब कुछ हमें दिया ||
सागर के ही गर्भ में छिपे ,अनमोल खजाने ,बहुमूल्य रत्न ,
मगर हमने उसे कुछ नहीं दिया ,हमने उसे कुछ नहीं दिया ||
हमने सब कुछ मैला कर दिया ,सागर की स्वर्णिम छवि को ,
हमने प्रदूषित किया उसे ,उसकी छवि को धूमिल किया ||
आखिर थक कर सागर ने भी ,बदला लेना शुरू किया ,
आया तूफानों को लेकर ,लहरों को भी रौद्र रूप किया ||
हरहराता सागर उछला और ,अनगिनत प्राणों को लील गया ,
तब मानव चिल्लाया - जानलेवा समुद्र ,क्या सच में सागर जानलेवा है ?
उसी ने तो जन्म दिया हमको ,हमने उसका रूप बिगाड़ा ,
आज अगर वह क्रोधित है ,तो यह सब हमारा ही कर्म है ,
वह तो बदला लेगा ही ,वह तो बदला लेगा ही ||
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