खजाना
एक सुरमई शाम में ,चाँदनी हुई अनबनी ,
खजाना जो यादों में था ,खो गया हवाओं में ,
कैसे ढूँढे कोई उसे ? असंभव सा ये काम था ||
उसे ढूँढेंगे हम ,अपने अंतर्मन में ,
मिलेगा खजाना हमें ,अपने ही अंतर्मन में ,
और अनबनी चाँदनी भर जाएगी ,अपने अंतर्मन में ||
राहें अजनबी हों ,या जानी - पहचानी ,
सभी तो चलती जाती हैं ,अपने ही आस -पास ,
उन्हीं राहों में ढूँढ लेते हैं ,अपना खजाना ,
यादों का खजाना ,यादों का खजाना ||
No comments:
Post a Comment