आत्मकथा नदी की
यह रचना मेरे नाती अंश अरोरा ( कक्षा -६ )ने
लिखी है | पढ़कर अपनी राय और आशीर्वाद दें |
सभी लोग मेरा मीठा और शीतल जल पीते हैं | मैं
धरती को उपजाऊ बनाती हूँ | जरा बताओ मैं कौन
हूँ ?क्या कहा ,मैं एक नदी हूँ ? हाँ जी हाँ ! मैं एक
नदी हूँ | आज मैं आपको अपनी आत्मकथा
सुनाती हूँ |
पर्वतों पर हुई तेज वर्षा और वहाँ की बर्फ के
पिघलने से जल की धारा के रूप में जन्म लेकर
नीचे उतरती हूँ | मैदानी क्षेत्र में नदी के नाम से ,
जिधर भी रास्ता मिले ,उधर बह जाती हूँ | जहाँ -
जहाँ से मैं बहती हूँ ,धरती को उपजाऊ चलती
हूँ |
देश भर में मेरी बहुत सी सखियाँ हैं ,गंगा ,यमुना ,
कृष्णा और कावेरी आदि | वे सब अलग - अलग
क्षेत्रों में बहती हैं | बहते -बहते एक दिन मैंने देखा ,
लोग गंदा पानी और कचरा मेरे अंदर डालकर मुझे
गंदा कर रहे थे | मुझे बहुत दुःख हुआ | थोड़े दिनों में
मैं प्रदूषित हो गई | मेरा गंदा पानी पीकर सब लोग
बीमार पड़ने लगे |
फिर एक दिन हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने
सफाई अभियान चलाया | देश के लोगों ने मिलकर
नदियों की सफाई की ,जिससे मैं और मेरी सखियाँ
पहले की तरह साफ और स्वच्छ बन गईं | हम खुश
हो गईं |
फिर हम सब नदियाँ अलग -अलग रास्ते में बहते -
बहते सागर में मिल गईं | सागर में मिलते ही हमारा
जल भी नमकीन हो गया | आपने मेरी आत्मकथा
सुनी ,उसके लिए धन्यवाद ||
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