इत्र
चाहे जितने इत्र छिड़क लो ,अपने ऊपर ,
चाहे जितने फूल खिला लो ,अपने आँगन ,
फैलेंगी खुश्बुएँ सब ओर ,सब ओर ||
गर्मी के बाद ,वर्षा ऋतु के ,आगमन पर ,
वर्षा की ठंडी बूँदें ,पड़ीं जब गर्म धरा पर ,
जो सोंधी खुश्बु ,सब ओर उड़ी और ,
जीवन सभी का ,उसने महका दिया ||
गर्म माटी पर पड़तीं ,वर्षा की पहली बूँदें ,
जिस खुश्बु को उड़ाती हैं ,उसके मुकाबले ,
इस जग में अन्य कोई ,खुश्बु नहीं है ,
यही सबसे सुंदर ,और महकता इत्र नहीं है ||
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