डायरी मेरी सखि ( 04 /05 /2021 )
मेरी सखि ,
कॉलेज के थे मस्ती भरे दिन ,शरारतों के दिन ,
शरारतों की सोच -सोच ,नए आईडिया के दिन |
मैं और मेरी सखि ,सुबह संग जाते थे कॉलेज ,
समय से पहले पहुँचते ,शरारतें करने के कारण |
उस समय प्रोफेसर्स के लिए ,कुर्सी होती थी लकड़ी वाली ,
चौड़ी सी कुर्सी ,सफेद तारों से बुनी वाली |
सुबह जल्दी पहुँच कर ,हम दोनों ने चाक पीसकर ,
उसका पाउडर डाला ,बुने हुए तारों पर |
मन ही मन हम प्रसन्न थे ,इंतजार कर रहे थे ,
कॉलेज शुरू हुआ तो प्रोफ़ेसर उसपर बैठ रहे थे |
प्रोफेसर के बैठने पर ,हम भी बैठ गए थे ,
और अब प्रोफेसर के उठने का इंतजार कर रहे थे |
थोड़ी देर बाद प्रोफेसर उठे ,बोर्ड के तरफ मुड़े ,
क्लास के सभी विदयार्थी ,जोर से हँस पड़े |
अब प्रोफ़ेसर हमारी तरफ मुड़े ,बोले - क्या हुआ ?
मगर कौन बोलता कि ,क्या हुआ ? क्या हुआ ?
प्रोफ़ेसर की काली पैंट पर ,सफेद जाल बन गया था ,
कुर्सी का डिजाइन उनकी ,पैंट पर बन गया था |
सारी क्लास खुश थी मन ही मन ,प्रोफेसर को कुछ पता नहीं चला ,
स्टाफ रूम में जाकर ही ,उन पर ये राज खुला |
ऐसी थीं शरारतें सखि हमारी ,
पसंद आईं या नहीं ,बताना भाई |
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