Monday, May 3, 2021

DAAYARI MERI SAKHI ( 04/05/2021 )

 

         डायरी मेरी सखि  ( 04 /05 /2021 )

मेरी सखि ,

कॉलेज के थे मस्ती भरे दिन ,शरारतों के दिन ,

शरारतों की सोच -सोच ,नए आईडिया के दिन | 

 

मैं और मेरी सखि ,सुबह संग जाते थे कॉलेज ,

समय से पहले पहुँचते ,शरारतें करने के कारण | 

 

उस समय प्रोफेसर्स के लिए ,कुर्सी होती थी लकड़ी वाली ,

चौड़ी सी कुर्सी ,सफेद तारों से बुनी वाली | 

 

सुबह जल्दी पहुँच कर ,हम दोनों ने चाक पीसकर ,

उसका पाउडर डाला ,बुने हुए तारों पर | 

 

मन ही मन हम प्रसन्न थे ,इंतजार कर रहे थे ,

कॉलेज शुरू हुआ तो प्रोफ़ेसर उसपर बैठ रहे थे | 

 

प्रोफेसर के बैठने पर ,हम भी बैठ गए थे ,

और अब प्रोफेसर के उठने का इंतजार कर रहे थे | 

 

थोड़ी देर बाद प्रोफेसर उठे ,बोर्ड के तरफ मुड़े ,

क्लास के सभी विदयार्थी ,जोर से हँस पड़े | 

 

अब प्रोफ़ेसर हमारी तरफ मुड़े ,बोले - क्या हुआ ? 

मगर कौन बोलता कि ,क्या हुआ ? क्या हुआ ?

 

प्रोफ़ेसर की काली पैंट पर ,सफेद जाल बन गया था ,

कुर्सी का डिजाइन उनकी ,पैंट पर बन गया था | 

 

सारी क्लास खुश थी मन ही मन ,प्रोफेसर को कुछ पता नहीं चला ,

स्टाफ रूम में जाकर ही ,उन पर ये राज खुला | 

 

ऐसी थीं शरारतें सखि हमारी ,

पसंद आईं या नहीं ,बताना भाई | 

 

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