लगा ऐसा
रात के आलम में ,ख़ामोशी के माहौल में ,
एक स्वर ,उभरा अचानक ,
पाया की अपनी ही ,चूड़ियाँ खनक गईं |
लगा ऐसा कि जैसे तुमने ,चूड़ियों को छेड़ा था ,
चमकते सूरज की ,फैली धूप में एकाएक ,
कहीं से अंधकार छा गया,
लगा आकाश पर बदली छा गई |
मगर ये तो मेरी जुल्फें हैं ,लगा ऐसा कि जैसे ,
तुमने ,हाँ ! तुमने ही ,जुल्फों को बिखराया |
तभी आत्मा में कोई स्वर उभरा ,
लगा ऐसा कि जैसे ,तुमने मुझे पुकारा ,
सुनकर पुकार साजन की ,
समझी कि तुम हो आए |
पलकें जो मैंने खोलीं ,खुद को अकेला पाया ,
जाना ये ख्वाब था सब ,तुम नहीं हो अब आए |
No comments:
Post a Comment