रस बरसा
सारी रात जागी मैं साजन ,
पायल छनकी जो बैरन --- |
लाज के मारे बोल ना पाई ,
तेरे बोल ने सुध बिसराई ,
लाज छोड़ कर होंठ जो खोले ,
बोली चिरैया बैरन --|
रस बरसा यूँ रतिया सारी ,
भूल गई मैं दुनिया सारी ,
लेकिन उसमें डूब ना पाई ,
भोर उतर आई आँगन -- |
तड़प लिए ये दिल ना माना ,
दर्द को मैंने अपना जाना ,
पर इतना भी पाती कैसे ?
मन में रही ना तड़पन -- |
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