Saturday, May 1, 2021

DAAYARI MERI SAKHI ( 01/05/2021 )

 

          डायरी मेरी सखि  ( 01 /05 /2021  ) 

 

 करोड़ों  हाथ हैं उठते ,मदद करने को दूजों को ,

 खिलाते हैं वो फूलों को ,खुश्बुएँ देते दूजों को | 

 

 वो तो रहने को घर बनाते हैं ,

चलने को बनाते हैं वो गाड़ियाँ ,

पहनने को वो बुनते हैं ,नई सुंदर साड़ियाँ | 


सफाई उनके दम से है ,सप्लाई उनके दम पर है ,

सभी सामान जो मिलता,सभी कुछ उनके दम पर है | 


उनकी दुनिया में तो बंधु ,ना ऊँची बिल्डिंगें बंधु ,

ना खुश्बुएँ उन्हें मिलतीं ,ना सुंदर सी साड़ियाँ | 


जिंदगी बीतती उनकी ,अभावों में ही डूबकर ,

चलो हम साथ उनका दें ,अपने हाथों को आगे बढाकर | 


सम्मान सहित उनका, जीवन हम सँवारें ,

बच्चों का उनके बंधु ,भविष्य हम निखारें ,

कोई कमी ना छोड़ें, हम उनकी जिंदगी में ,

फूलों की खुश्बुएँ हम ,भर दें उनकी जिंदगी में | 


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