श्रद्धा सुमन ( भाग - 3 )
मैं ही मधुशाला के अंदर ,
जहाँ बरस रही हाला ,
चातक पक्षी बन बैठा हूँ ,
जिव्हा बनी मेरा प्याला ,
बूँद -बूँद टपकाती जाती ,
छिपी कहाँ साकी बाला ,
बैठ कहाँ मुस्काती होगी ,
मेरी अपनी मधुशाला |
सागर ने तो दिया हलाहल ,
मधुशाला ने दी हाला ,
सागर की मस्त लहरें ही ,
बनीं चंचल साकी बाला ,
लहरों ने चुल्लू भर दीना ,
मधुशाला ने भरा प्याला ,
उस प्याले ने मेरे अंदर ,
भर दी जीवन की हाला |
विश्व छोड़कर चला गया जब ,
छोड़ गया अपना प्याला ,
जो कोई चाहेगा पीना ,
पीले मदिर ,मधुर हाला ,
पिला ही देंगी सभी को हरदम ,
वो सुंदर साकी बाला ,
बुला ही लेगी सभी को अंदर ,
उस प्रिय कवि की मधुशाला |
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