रात जंगल की
एक समय की बात है ,जब गाँव ,खेत और जंगल थे ,
बड़े और घने जंगल थे ,
रात के समय अगर गुजरो वहाँ से ,
जुगनुओं का मेला लगा रहता था |
झींगुरों की आवाज गूँजती रहती थी ,
घने पेड़ों के कारण चाँद की ,
चाँदनी भी नीचे तक नहीं जाती थी ,
सर्दी की रातें तो और काली हो जाती थीं |
अगर पैदल वहाँ से निकलो ,
तो डर ही दिल में समाया रहता था ,
जुगनुओं की चमक से दिल में ,
और होठों पर मुस्कान का साया रहता था |
आज भी धरा पर जंगल हैं ,
मगर वो तो कंक्रीट के जंगल हैं ,
पेड़ों का नामोनिशां तक नहीं ,
जुगनू तो अब दिखाई ही नहीं देते हैं |
आज तो जुगनुओं की जगह ली है ,
किसी और ने यानि मोबाईल फोन ने ,
उसी की लाइट जलाओ तो ,
दूर वाला उसे ही जुगनू समझेगा ,
यह तो आधुनिक जुगनू है दोस्तों |
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