विरहिन
सीता का है नाम बसा ,रामायण की हर चौपाई में ,
वन -वन घूमी सीता तो ,दर्जा था ऊँचाई में |
उर्मिला का भी नाम हुआ ,गुप्त जी की साकेत में ,
कवि ने उर्मिला की विरह वेदना ,वर्णित की गहराई में |
राज्य मिला भरत को मगर ,वह तो त्याग समझते थे ,
चरण पादुका रख राम की ,खुद बैठे चरणाई में |
सबने दिया दर्जा ऊँचा ,इन सभी चरित्रों को ,
क्या किसी ने झाँक के देखा ?माण्डवी -हृदय की गहराई में |
एक महल में रहते हुए भी ,क्या वह भरत के साथ थी ?
क्या वह एक सुहागिन थी ? क्या वह राजकुमारी थी ?
ना संग पति का था ,ना कोई उसको सुख था ,
वह तो विरहिन थी ,जो महल में कैदी जैसी थी ,
जीवन उसका बीत रहा था ,विरहिन बन अँगनाई में |
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