Thursday, January 20, 2022

VIRHIN ( KSHANIKA )

 

                     विरहिन 

 

सीता का है नाम बसा ,रामायण की हर चौपाई में ,

वन -वन घूमी सीता तो ,दर्जा था ऊँचाई में | 

 

उर्मिला का भी नाम हुआ ,गुप्त जी की साकेत में ,

कवि ने उर्मिला की विरह वेदना ,वर्णित की गहराई में | 

 

राज्य मिला भरत को मगर ,वह तो त्याग समझते थे ,

चरण पादुका रख राम की ,खुद बैठे चरणाई में | 

 

सबने दिया दर्जा ऊँचा ,इन सभी चरित्रों को ,

क्या किसी ने झाँक के देखा ?माण्डवी -हृदय की गहराई में | 

 

एक महल में रहते हुए भी ,क्या वह भरत के साथ थी ? 

क्या वह एक सुहागिन थी ? क्या वह राजकुमारी थी ? 

 

ना संग पति का था ,ना कोई उसको सुख था ,

वह तो विरहिन थी ,जो महल में कैदी जैसी थी ,

जीवन उसका बीत रहा था ,विरहिन बन अँगनाई में | 

 

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