संवार ले
देह बनी है माटी की ,साँसें मिलीं उधार की ,
किस बात का तू ,मानव करे घमंड ?
ये सारी रचना की ,उसने प्यार की ,
तो मानव तू प्यार कर ले ,जीवन संवार ले ||
जो कुछ जीवन में ,तुझे मिला ,
उसको सिर झुका कर ,तू स्वीकार कर ,
ईश्वर की उस देन को ,व्यर्थ ना गँवा तू ,
तो मानव तू प्यार कर ले ,जीवन संवार ले ||
ईश्वर की हर सौगात को ,रख तू संभाल के ,
उन्हीं सौगातों से तो ,जीवन तेरा मालामाल है ,
उनके लिए तू ,ईश्वर का धन्यवाद कर ,
तो मानव तू प्यार कर ले ,जीवन संवार ले ||
ये मानव जीवन ,जो मिलता है मुश्किल से ,
उसी जन्म को बिता दे तू ,मानवता की सेवा में ,
मानवता की सेवा में ,मिलेगा साथ ईश्वर का ,
तो मानव तू प्यार कर ले ,जीवन संवार ले ||
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