चंदा ---- 1 (चाँद जाने कहाँ )
गगन में जब सूरज चमका,चाँद जाने कहाँ खो गया?
बदरा छाए जब गगन में ,चाँद जाने कहाँ खो गया ?
मैं जो निद्रा में डूबी ,चाँद जाने कहाँ खो गया ?
मैं जो सपनों में खोयी ,चाँद जाने कहाँ खो गया ?
दिन निकलता रहा ,शाम ढलती रही ,
चाँद का हमको, कुछ भी पता ना चला ,
ढूँढा किए हम उसे ,आसमां में सारा दिन ,
मगर अपना चाँद तो ,जाने कहाँ खो गया ?
रात गहराती गई ,तारे टिम - टिम किए ,
रोज़ सपनों की ,दुनिया बदलती रही ,
सपनों में तो ,चाँद आता था रोज ,
जगते में चाँद की ,रंगत बदलती रही |
गायब रहता था चाँद ,दिखाई ना देता ,
गगना के माथे का टीका ,घूँघट में छिपा रहता ,
बदरा ऊपर गगन में ,फैले रहते थे रोज ,
पवना के संग खेलते - खेलते ,
चाँद को अपने घर में छिपाते थे रोज |
क्या करें ,कहाँ ढूँढें ? हम अपने चाँद को ,
तुमने भी तो देखा होगा दोस्तों ,हमारे चाँद को ,
कोई हमको बता दे ,चाँद जाने कहाँ खो गया ?
आओ संग हमारे दोस्तों ,ढुंढवाओ चाँद को दोस्तों |
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