संदली खुश्बु
भोली -भाली प्यारी सी ,मेरी राजकुमारी सी ,
बोली ऐसी कोयल कूके,संदल सी फूलों में महके|
नन्हीं सी वो मटके चटके,गले में मेरे जब वो लटके,
मुस्कानों का वो भंडार ,मिलती हैं यूँ ख़ुशी हजार |
परी है वो तो सारे घर की,सारे घर में उड़ती फिरती,
हमें मिली है ऐसी माया ,घर में खुशियों की है छाया |
छोटे -छोटे खेल खिलाए,घर में सबको वही सिखाए,
सबकी हुई साकार कल्पना,रंगों से जब सजी अल्पना|
अंश ॐ के पाए उसने ,घर में अरविंद खिलाए उसने ,
खिलती ऐसे चमन के फूल ,संदल सी महके है धूल |
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