एक अहसास महल में
आज दोस्तों तुम्हें सुनाएं,अपने सपनों की बातें,
आँखें खुलीं थीं जागे थे हम ,
महल में घूमने आए थे हम |
राजस्थान के महलों के बारे में बहुत पढ़ा था,
इसीलिए राजस्थान घूमने का नशा चढ़ा था ,
एक महल में जैसे ही अंदर प्रवेश पाया ,
तभी एक अहसास नया सा मैंने यूँ पाया ,
एक पालकी देखी मैंने ,उसमें मुझे बिठाया ,
उसे कहारों ने उठा कर महल में पहुँचाया ,
बजी दुदुंभी और नौबत तभी महल के अंदर ,
पर्दे से देखा मैंने चहल-पहल थी महल के अंदर|
नज़र गई दर्पण पर तो देखा,मैं हूँ सजी-धजी सी,
रानी जैसा रूप था मेरा ,वैसा ही श्रृंगार ,
मुस्कानों से सजी पालकी ,दिल में उठी हिलोर ,
मगर नहीं थी कोमल,सुंदर ही,साथ में थी तलवार |
तभी किसी ने मुझे पुकारा ,सपना टूटा मेरा ,
"चलो! भई अंदर,क्यों खड़ी -खड़ी मुस्कातीं "?
पति की थी आवाज ,लौटी आज की दुनिया में ,
मगर वो बरसों पुराना अहसास ,
आज भी है मेरे दिल की थाती |
क्या जन्मों -जन्मों का चक्कर है ?
क्या पहला कोई जन्म था ?
क्या ये फ़्लैश बैक था ?
मगर दोस्तों जो भी मैंने देखा ,
जो अहसास मैंने पाया ,
मुझे तो बड़ा मज़ा आया ,
आज भी वो अहसास बाकि है |
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