Sunday, October 25, 2020

EK AHSAS MAHAL ME ( JIVAN )

    एक अहसास महल में  


आज दोस्तों तुम्हें सुनाएं,अपने सपनों की बातें,

आँखें खुलीं थीं जागे थे हम ,

महल में घूमने आए थे हम |


राजस्थान के महलों के बारे में बहुत पढ़ा था,

इसीलिए राजस्थान घूमने का नशा चढ़ा था ,

एक महल में जैसे ही अंदर प्रवेश पाया ,

तभी एक अहसास नया सा मैंने यूँ पाया ,

एक पालकी देखी मैंने ,उसमें मुझे बिठाया ,

उसे कहारों ने उठा कर महल में पहुँचाया ,

बजी दुदुंभी और नौबत तभी महल के अंदर ,

पर्दे से देखा मैंने चहल-पहल थी महल के अंदर|


नज़र गई दर्पण पर तो देखा,मैं हूँ सजी-धजी सी,

रानी जैसा रूप था मेरा ,वैसा ही श्रृंगार ,

मुस्कानों से सजी पालकी ,दिल में उठी हिलोर ,

मगर नहीं थी कोमल,सुंदर ही,साथ में थी तलवार |


तभी किसी ने मुझे पुकारा ,सपना टूटा मेरा ,

"चलो! भई अंदर,क्यों खड़ी -खड़ी मुस्कातीं "?

पति की थी आवाज ,लौटी आज की दुनिया में ,

मगर वो बरसों पुराना अहसास ,

आज भी है मेरे दिल की थाती |


क्या जन्मों -जन्मों का चक्कर है ?

क्या पहला कोई जन्म था ?

क्या ये फ़्लैश बैक था ?

मगर दोस्तों जो भी मैंने देखा ,

जो अहसास मैंने पाया ,

मुझे तो बड़ा मज़ा आया ,

आज भी वो अहसास बाकि है |





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