गलियाँ लहरों की
चंचल लहरें उछल - उछल कर ,
शोर मचाकर ,पहुँचीं मेरे पास ,
भीग गया मेरा तो तन -मन ,
पहुँच के उनके पास |
दाएँ -बाएँ खड़े थे जो ,सूखे -सूखे थे वो ,
नहीं था उनके कपड़ों पे,पानी का एक छींटा,
पर मैं भीगी थी इतना ,मन -तन सब ही भीगा |
लहरों में एक गीत था ,गीत में संगीत था ,
तन मन को मेरे उन ,लहरों ने थिरकाया ,
गलियाँ थीं वो कैसी ,जहाँ पे मुझको ,
लहरों ने नाच नचाया |
गलियाँ भीगी-भीगी सी,भरीं थीं फिसलन से,
नाच उठा था मन मेरा,संगीत की हर धड़कन पे,
यारों वो लहरों का साथ ,वो बजता संगीत ,
उन गलियों में लगे गूँजने ,प्यार के लाखों गीत |
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