Monday, October 12, 2020

AAYA SAAWAN ( PREM )

             आया सावन 


रिमझिम गिरे सावन ,मचल -मचल जाए मन ,

कैसे मनाऊँ मैं सावन ,साथ में नहीं हैं साजन?


सखियाँ सब झूला झूलतीं,हैं पास जिनके साजन,

मैं कैसे झूला झूलूँ ,जब दूर बसे हैं साजन ?


अंबुआ पे कोयल कूकती ,

सखियाँ जब झूला झूलें ,

मैं बगिया द्वार खड़ी हो ,

राहें साजन की तकती |


राहें हैं सूनी दूर तक ,कोई नहीं निशान ,

इतना नहीं मैं जानती,आएँगे कब साजन?


समय बीतता जा रहा ,

सखियाँ मुझे बुला रहीं ,

साथ - साथ ही साजन को ,

साँसें मेरी बुला रहीं |


दिन यूँ ही बीत चला ,

बदरा घन - घन गरज रहे ,

साजन ऐसे मौसम में ,

तुम कहाँ जा बसे ?


अगली सुबह जब आई ,

द्वार की घंटी बजी अचानक ,

द्वार खोल कर देखा जब मैने,

पाई मैंने ख़ुशी अचानक |


द्वार खड़े थे मेरे साजन ,

तभी अचानक बादल गरजे ,

मैं थी साजन की बाहों में ,

तभी मनाया हमने सावन |

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