आया सावन
रिमझिम गिरे सावन ,मचल -मचल जाए मन ,
कैसे मनाऊँ मैं सावन ,साथ में नहीं हैं साजन?
सखियाँ सब झूला झूलतीं,हैं पास जिनके साजन,
मैं कैसे झूला झूलूँ ,जब दूर बसे हैं साजन ?
अंबुआ पे कोयल कूकती ,
सखियाँ जब झूला झूलें ,
मैं बगिया द्वार खड़ी हो ,
राहें साजन की तकती |
राहें हैं सूनी दूर तक ,कोई नहीं निशान ,
इतना नहीं मैं जानती,आएँगे कब साजन?
समय बीतता जा रहा ,
सखियाँ मुझे बुला रहीं ,
साथ - साथ ही साजन को ,
साँसें मेरी बुला रहीं |
दिन यूँ ही बीत चला ,
बदरा घन - घन गरज रहे ,
साजन ऐसे मौसम में ,
तुम कहाँ जा बसे ?
अगली सुबह जब आई ,
द्वार की घंटी बजी अचानक ,
द्वार खोल कर देखा जब मैने,
पाई मैंने ख़ुशी अचानक |
द्वार खड़े थे मेरे साजन ,
तभी अचानक बादल गरजे ,
मैं थी साजन की बाहों में ,
तभी मनाया हमने सावन |
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