चमक
आ री चंदनिया नीचे उतर कर , छिप जा मेरे आँचल में ,
मेरा आँचल छिपा तो लेगा तुझे ,
पर तेरी चमक तो छनकर बाहर आएगी ,
चमक देगी सारे जग को , भेद को खोल ही जाएगी ||
चंदनिया तू तो चाँद की है प्यारी , चमक है तेरी न्यारी ,
आ जा उतर आ नीचे , रहेंगे मिल के हम साथ - साथ ,
तू मुस्कानें बिखरा कर , चमकाना सारे जग को ||
गगन से उतरती जब नीचे , धरा भी तो मुस्का जाती ,
मानो पूरी धरा भी , चाँदी सी चमक में नहा जाती ,
तभी तो धरा भी तेरे , समान ही चमक पा जाती ||
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