नदी - सागर
हिम पिघला तो जलधार बनी , जलधार ने रूप बदला ,
नदिया दौड़ी मीठा जल लेके , जाकर मिल गई सागर में ,
सागर ने गले लगाया उसको , जल नमकीन बनाया उसका ,
साथ ही नदिया को उसने , रत्नों की खान बनाया ||
नदिया ना बना सकी सागर के पानी को मीठा ,
नदिया थी छोटी , बहुत छोटी , सागर था विशालकाय ,
अतुल जल का भंडार ,रत्नों का आकर ,मगर फिर भी नमकीन ||
नदिया तो प्यास बुझाती सबकी , फसलों को हरा - भरा कर देती ,
सागर ना कर पाया ये सब , जल का अतुल भंडार होकर भी ,
ना प्यास बुझा पाए किसी की , ना फसल ही लहरा पाए ||
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