Tuesday, September 30, 2025

NADII - SAAGAR ( RATNAAKAR )

 

                          नदी - सागर 

 

हिम पिघला तो जलधार  बनी , जलधार ने रूप बदला ,

नदिया दौड़ी मीठा जल लेके , जाकर मिल गई सागर में ,

सागर ने गले लगाया उसको , जल नमकीन बनाया उसका ,

साथ ही नदिया को उसने , रत्नों की खान बनाया   || 

 

नदिया ना बना सकी सागर के  पानी को मीठा ,

नदिया थी छोटी , बहुत छोटी , सागर था विशालकाय ,

अतुल जल का भंडार ,रत्नों का आकर ,मगर फिर भी नमकीन  || 

 

नदिया तो प्यास बुझाती सबकी , फसलों को हरा - भरा कर देती ,

सागर ना कर पाया ये सब , जल का अतुल भंडार होकर भी , 

ना प्यास बुझा पाए किसी की , ना फसल ही लहरा पाए   || 

 

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