नजारा सावन का
सावन का महीना , रिमझिम - रिमझिम बरखा आई ,
पवन अपने संग , बदरा को उड़ाकर लाई ,
घन - घन करते बदरा के बीच , दामिनी की चमकार आई ,
घनघोर ,मूसलाधार बरखा से , राहों में नदिया बह आई ||
बचपन के पैर बढ़े , दौड़े पहुँचे उस धारा में ,
बनीं कश्तियाँ कागज की , खूब ही बच्चों ने तैराईं ,
गगना में उड़ते बदरा ने , जब यह नजारा देखा ,
तो खुशी से उसने बरखा की , गति और बढ़ाई ||
बदरा की खुशी में गगना ने भी , अपने अँगना में खुशी मनाई ,
दामिनी की कड़क यूँ सुनाई दी , मानो बज उठी हो शहनाई ,
ये सावन का नजारा है भई , सावन का नजारा है भई ||
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