जल - विहीन
बदरा तुम जल लेकर आए , बरखा भेजी धरा पर तुमने ,
कभी - कभी रिमझिम बूँदें , कभी मूसलाधार ,
गर्मी से तप्त धरा ने पाई ठंडक , और मानव ने भी ,
और कभी धरा हुई जल - थल ,
और रुकी मानव जीवन की रफ्तार ||
जल की कमी को तुम ही बदरा , कर देते हो पूरी ,
मानव ही कर देता है , पूरी को अधूरी ,
तुम तो बदरा देकर जल को , हरियाली बरसाते ,
तभी तो मानव अपने खेतों में , सब कुछ हैं उपजाते ||
साथ दामिनी भी कड़क - कड़क कर , मानव को डराती ,
मगर मानव को तो बदरा , समझ नहीं है आती ,
मानव जल संग्रहित करेगा , तभी तो पूरा पाएगा ,
नहीं तो मानव का जीवन ,
जल - विहीन हो जाएगा , जल - विहीन हो जाएगा ||
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