जंगल
ये जंगल कंकरीट का,पत्थर और ईंट का,
सीमेंट ने जोड़ा उन्हें,मकानों का रूप दिया उन्हें,
मानव ने बस के, घर बनाया उन में,
सपनों को उन में ढाल कर, घर बसाया उन में।
किलकारियाँ गूँज गईं, बच्चों की उन में,
खेल अनोखे खेले गए, अंदर उन में,
कहकहे लगाए गए, अनगिनत उन में,
गीत गुनगुनाए गए, मधुर से उन में।
आने वाला कल, खिलखिलाएगा उन में,
कदम बढ़ना सीख के, दौड़ लगाएँगे उन में,
बुजुर्ग भी मुस्कुराएँगे,लगातार उन में,
प्यार के फूल, अपनी महक फैलाएँगे उन में।
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