मुस्कान
बदरा की ओट से, वो देखो भास्कर झाँका,
धरा को उस ने प्यार भरी,नजरों से ताका,
भास्कर की ओर देख, धरा हौले से मुस्कुराई,
धरा के तृण-तृण ने ली,झूम कर अँगड़ाई ।
कलियाँ भी देखो तो, खिल के फूल बन गईं,
उन की मुस्कान से,बगिया भी मानो खिल गई,
फैली खुश्बु चहुँ ओर, गुलशन महक उठा,
ये सब देखकर, पंछियों का झुंड चहक उठा ।
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