Sunday, November 21, 2021

VIKAAS ( SAAMAAJIK )

  विकास 

कभी थीं जरूरतें मानव की, रोटी, कपड़ा और मकान,
आज बदलीं हैं सब, पिज्जा, फैशन और बंगला,
पिज्जा खा कर पेट भरें,प्यास बुझाएँ कोला से,
कपड़े ऐसे तन ढाँपें कम,उघाड़ें ज्यादा,
बंगले के दस कमरों में,रहे अकेला आदमी ।

क्या यही तरक्की है हमारी ? क्या यही विकास है?
क्या यही रूप रंग है जिंदगी का ?
क्या यही अपना आवास - विकास है?
जुड़ जाओ प्रकृति से,जुड़ जाओ मानवता से,
मिलाओ हाथ आपस में,मिलाओ दिल आपस में ।

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