माखन चोर
रंग एक सा हम दोनों का,
तू भी काला, मैं भी काली,
फिर क्यों कृष्णा तुझे पूजते ?
और मुझे बितराते ,
तू भी मानव रूप में आया,
मैं भी तो हूँ मानवी,
फिर क्यों तेरा जीवन सुख से बीता ?
मेरा दुःख को पाते ।
दुनिया क्यों भेद करे है कृष्णा?
एक पुजे, एक फेंका जाए,
जीवन की नैया भी कृष्णा,
एक डूबे, एक पार लगाए,
तू तो माखनचोर था कृष्णा,
मेरा तो सुखचैन चुराया,
तुझे मिला है प्यार सभी का,
मैंने तो सबकुछ ही गँवाया ।
अब तो जाग नींद से तू ही,
दुनिया से दुःख-दर्द मिटा दे,
ऐसा ना हो जाए कि,
दुःख सारी दुनिया को मिटा दे,
मानव को सद्बुद्धि देकर,
उसके सारे गम मिटा दे,
दे दे सबको प्यार तू अपना,
अपना दुलार सभी पे लुटा दे।
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