दोषी कौन ?
सूरज ने धरा पर , जो बिखराया सोना ,
वो सिमट कर तेरे रूप में , ढल गया साथी ,
जिंदगी मेरी तो सोने सी बन गई ,
हर पल मुस्कान से ही भर गया ||
सूरज ने बिखराई , जो ऊर्जा धरा पर ,
प्रकृति भर गई उसी ऊर्जा से ,
उसी प्रकृति ने आँचल , भर दिया मानव का ,
मानव को जीवन में , सभी उपहार मिले ||
मानव ने किया अपव्यय , उपहारों का हर पल ,
धरा का उपहारों का , खजाना खाली होने लगा ,
मानव नहीं चेता और , खजाना खाली हो गया ,
प्रकृति बिगड़ उठी , मानव को सजा देने लगी ||
कहीं बाढ़ आई , कहीं बादल फटे ,
कहीं ग्लेशियर पिघले , कहीं पहाड़ टूटे ,
मानव ने दोष दिए , प्रकृति को ,
क्या तुम बता सकते हो दोस्तों ?
दोषी है कौन ? दोषी है कौन ??
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