अटके
गीतों के झरोखों से , झाँक कर देखा ,
तो शब्दों की कंदरा में हम अटके ,
उन्हीं शब्दों से मिलकर गीत बन गए ,
हमें लगा अरमानों के कमल खिल गए ||
सब ओर रंग ही रंग छा गए ,
मौसम और हवाएँ सभी महक गए ,
प्यार का मौसम मानो आ गया ,
हम उसी में पूरी तरह डूब गए ||
शब्दों को जो लपेटा , हमने अपनी लेखनी में ,
वही शब्द मानो , खिल - खिल कर महके ,
और कुछ महक , मेरी लेखनी में छोड़ गए ,
हम भी उसी महक में , दोस्तों डूब गए ||
आओ दोस्तों तुम भी , उसी महक में डूबे ,
और मेरे लिखे , शब्दों को दिल से चुन लो ,
दिल में जगी , मुस्कान को होठों पे सजा लो ||
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