Monday, December 8, 2025

SEEDHII ( CHANDRAMAA )

 

                            सीढ़ी 

 

चाँद जा छिपा बदरा के आँचल में  ,पवन भी धीमी सी बही  , 

चाँदनी जो फैली गगन में ,धरा भी मोहित हो गई  ,

चाँदनी कुछ - कुछ निकली , बदरा के झरोखों से ,

पहुँच कर उसकी चमक तो , धरा को भी चमका गई   || 

 

धरा ने पुकारा चाँद को  , आ जाओ चाँद तुम  ,

चंदनिया  और भेजो तुम  , मुस्कान अपनी बढ़ा लो तुम ,

चाँद ने सुनी जो धरा की पुकार  , बोला वो मुस्कान के साथ ,

मैं तो नीचे ही उतर आऊँगा , जरा सीढ़ी  लगा दो तुम  || 

 

मगर सीढ़ी तो ना थी कोई  , धरा क्या करती ,थी लाचार  ?

मानव ने बहुत कुछ किया , मगर ना सीढ़ी की तैयार  ,

चलो जुट जाओ मानव तुम  , अब एक सीढ़ी करो तैयार   || 

  

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