सीढ़ी
चाँद जा छिपा बदरा के आँचल में ,पवन भी धीमी सी बही ,
चाँदनी जो फैली गगन में ,धरा भी मोहित हो गई ,
चाँदनी कुछ - कुछ निकली , बदरा के झरोखों से ,
पहुँच कर उसकी चमक तो , धरा को भी चमका गई ||
धरा ने पुकारा चाँद को , आ जाओ चाँद तुम ,
चंदनिया और भेजो तुम , मुस्कान अपनी बढ़ा लो तुम ,
चाँद ने सुनी जो धरा की पुकार , बोला वो मुस्कान के साथ ,
मैं तो नीचे ही उतर आऊँगा , जरा सीढ़ी लगा दो तुम ||
मगर सीढ़ी तो ना थी कोई , धरा क्या करती ,थी लाचार ?
मानव ने बहुत कुछ किया , मगर ना सीढ़ी की तैयार ,
चलो जुट जाओ मानव तुम , अब एक सीढ़ी करो तैयार ||
No comments:
Post a Comment