"बचपन"
कल का बचपन सुनता आया,चंदा-मामा दूर के ,पुए पकाएँ बूर के,
बैठ गोद दादी नानी की ,
सपनों की , परियों की कहानी ।
आने वाले कल का बचपन,
नहीं गोद दादी नानी की,
बैठ सामने कम्प्यूटर के,
देखेगा चलते कदम मनु के,
ऊबङ-खाबङ चाँद पर,
बिन जलवायु चाँद की धरती,
ना सपनों की गलियाँ,
ना परीलोक की परियां ।
कल का बचपन झूलता आया ,
बाँहों के वो झूले,
माँ , दादी - नानी सब ,
गाती लोरी , दे - दे झूले,
आने वाले कल का बचपन,
होगा झूलों से अनजान,
होगा लोरी से अनजान,
सुनेगा कैसेट-जैक एंड जिल वैंट अप दा हिल,
या - बा-बा ब्लैक शीप,
ना बाँहों के झूले,
ना मीठी सी लोरी ।
कल का बचपन चला घूमने,
दादा की अँगुलि थामे,
और देश-भक्तों की कहानी,
सुनके बितायीं शामें,
आने वाले कल का बचपन,
बैठ बन्द कमरे में,
टी. वी. , कम्प्यूटर देख-देख कर,
डूबा कार्टूनों में,
मोबाईल और इन्टरनेट भी,
जगाए ना कोई आशा,
ई-मेल और एस. एम. एस. ही,
ले डूबे उसकी भाषा ।
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