वीराना
दूर तक वीराना नजर आता है ,
मानव मूरत तो है दूर की बात ,
कोई पौधा न अंकुर ही नजर आता है ,
चारों तरफ पत्थरों का साम्राज्य है ,
ये वीराना कुदरत की कोई दें नहीं ,
ये बनाया है मानव के ही हाथों ने ,
कुदरत ने तो फूल खिलाये धरती पर ,
मानव ने वीराने ही वीराने बनाये हैं यहाँ |
हर तरफ शोर उगाया है इसने ,
हर तरफ आग और कहीं बोया है धुआं |
ऐसा धरती का कोई छोर नहीं ,
जहाँ मानव का कारनामा न हो ,
बचाना है जो धरती को तो ,
बांध दो मानव के दो हाथों को |
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