' निभाने के लिए '
सदियों सी लंबी राहें,
छोटी करने के लिए आ,
फिर से मेरी बाँहों में,
समाने के लिए आ ।
श्वेत फूल खिल गए हैं,
मेरे गुलिस्तां में,
आ उन सभी में,
रंग भरने के लिए आ ।
सागर किनारे बैठी हूँ ,
एक आस सी लिए ,
लहरों की तरह मुझको,
भिगोने के लिए आ ।
सूरज की तपिश से है ,
ये धरा तपी,
तू ही कहीं से बन बदरा,
बरसने के लिए आ ।
जिंदगी परछाईं न बन जाए मेरी,
लिपटीं रहें मुझसे न तनहाइयाँ मेरी,
जीवन भर मेरा साथ,
निभाने के लिए आ ।
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