राही
पूरब से आया एक राही ,
किरनों का जाल लेकर ,
अंधकार को मिटाकर ,
फैलाया प्रकाश ।
छम - छम करती उषा आयी ,
फँस कर रह गयी उसके जाल में ,
फिर भी खिलखिलाती रही ,
हँसती - गाती रही ।
राही आगे बढा ,
जाल को बढाता रहा ,
किरनों की तिपश को ,
सहन न कर सकी ,
बेचारी उषा ?
आयी दोपहर ,
झेलने तपिश को ,
देने साथ राही का ,
डट कर चलती रही साथ में ।
धीरे - धीरे जाल कुछ कम हुआ ,
तपिश हुई हल्की ।
आयी संध्या ,
खूबसूरती की मूरत ,
किरनों की चुनरी ओढे ,
राही ने उसे देखा ,
पूरब से आया एक राही ,
किरनों का जाल लेकर ,
अंधकार को मिटाकर ,
फैलाया प्रकाश ।
छम - छम करती उषा आयी ,
फँस कर रह गयी उसके जाल में ,
फिर भी खिलखिलाती रही ,
हँसती - गाती रही ।
राही आगे बढा ,
जाल को बढाता रहा ,
किरनों की तिपश को ,
सहन न कर सकी ,
बेचारी उषा ?
आयी दोपहर ,
झेलने तपिश को ,
देने साथ राही का ,
डट कर चलती रही साथ में ।
धीरे - धीरे जाल कुछ कम हुआ ,
तपिश हुई हल्की ।
आयी संध्या ,
खूबसूरती की मूरत ,
किरनों की चुनरी ओढे ,
राही ने उसे देखा ,
No comments:
Post a Comment