'शक्ति जल की'
बादलों से झरता जल,
पहुँचा जब धरा पर,
धारा बन बहा कल - कल ।
दी शक्ति बिजली की,
अलसायी दुनिया जागी,
जीवन बढ़ा , हुई उन्नति ।
नदियाँ , सागर,
रत्नों का भंडार,
मिले मानव को ।
पर यही सागर जब उफना,
यही शक्ति , जब बढ़ी विनाश की ओर ,
तो नहीं मिला कोई कोना,
छुपने को मानव को ।
ले गया बहा कर,
जो दिया था जीवन मानव को ।
जीवन देने वाला जल,
बना प्रलयंकारी,
मचा हाहाकार,
दैत्य बना मीठा जल ।
रह गया विनाश,
बचे खंडहर,
स्वजनों के कंकाल,
और शांत खारा जल ।
अभी भी कुछ शेष था,
जीवित , पर मृत - प्राय मानव,
पथरी निगाहों से ढूंढते स्वजनों को,
खङे इंतज़ार करते,
किसी मददगार हाथ का,
जो लाए उनके लिए,साफ , स्वच्छ , मीठा जल ।
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