'मन - पंछी'
हरियाली रेत में खो गए,
कदमों के निशां तेरे - मेरे,
जीवन की नदिया में,
बह गए पतवार तेरे - मेरे ।
नीङ का बनाते हुए,
वक्त कैसे बीत गया ?
जान ना पाए हम,
उलझ कर संसार में,
खुद को भी,
पहचान ना पाए हम,
सपनीले गगन में मन - पंछी,
उङ गए तेरे - मेरे ।
जिन्दगी की राहों में,
चली मैं हर कदम साथ तेरे,
हर राह , हर पड़ाव , रूकी,
दौड़ी मैं संग तेरे,
इस धूप - छाँव को पार करते,
बन गए ये सांझ भी सवेरे ।
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