" मानवीय रंग "
दौङा दौङा ,पल पल मानव , करता गया विकास नए,
खेल खेल में , उसने क्रियान्वित , किये अजूबे नए नए ।
एक अजूबा उसी में उसका ,बनकर बल्ब हुआ उजियारा,
बिखरी उसकी छटा तो छंट गया , मानव के घर का अँधियारा ।
चलता गया आगे को मानव , पाकर फिर आयाम नए,
रोक पाए न उसको कोई , चाहे जितने जतन किए ।
बढ़ते कदमों के जरिए ही , पाया उसने टेलीफोन ,
पाती की थाती ना थी अब , अब आए मोबाईल फोन ।
थमी नहीं रफ्तार अभी भी , घर आया टेलीविजन ,
घर बैठे बैठे ही देखा , इस दुनिया का हर रंग ।
कल तक मानव बैठ चौपाल पर ,अपनी पंचायत लगाता था,
आज दूर- दूर देशों के , हाल जानता मानव है ।
लाया मानव कम्प्यूटर भी , इंटरनेट की खोज करी,
छोटे से स्क्रीन पर उसने , देखी अपनी दुनिया पूरी ।
कल परसों की नन्हीं दुनिया ,बनी आज संसार विशाल,
जीवन पथ पर आगे बढ़ते , पीछे छूटा कल का हाल ।
उङता ऊंचे नभ में हरदम , गगन पास में दिखता है,
ऊपर उङते काले बदरा , अब हाथों से छूता है ।
चांद के रथ पर बैठ के मानव , तारों के झुरमुट गिनता है,
सूरज की किरणों से ही वह , अपने सपनों को सिलता है ।
बदरा की चमकीली दामिनी , घर में चमकन दिखलाती है,
रंगों की छटा बिखरा आंगन में ,इन्द्रधनुष छिटकाती है ।
पग पग चलने वाला मानव , पहिए पर आगे बढ़ता है ,
सीढ़ी दर सीढ़ी नहीं चढ़ेगा , लिफ्ट में सीधे चढ़ता है ।
रूक पाए ना अब भी वह तो , आगे बढ़ता जाएगा ,
पाएगा आयाम नए वह , अपनी मंजिल आप बनाएगा ।
मानव की मंजिल पता नहीं , है दूर कहां अनजानी ओर,
कब पाएगा मानव उसको , पकङे अपनी उम्मीदी डोर ।
आगे आने वाली दुनिया , देखेगी और भी नये रंग,
शायद ये मानव ही चल दे , लेकर नए संग और ढंग ।
रफ्तार बढ़ी है मानव की ,तो दुनिया भी संग दौङ चली ,
भूली दुनिया पिछला पन्ना , अगला अध्याय जोङ चली ।
आने वाला कल मानव का , क्या रंग नए दिखलाएगा ,
सतरंगा इन्द्रधनुष क्या अब ,अधिक रंग बिखराएगा ।
रचा ब्रह्माण्ड रचेता ने , चांद तारों का झुरमुट प्यारा ,
उसी में एक अनोखा मनु , लिए फूलों का गुच्छा न्यारा ।दौङा दौङा ,पल पल मानव , करता गया विकास नए,
खेल खेल में , उसने क्रियान्वित , किये अजूबे नए नए ।
एक अजूबा उसी में उसका ,बनकर बल्ब हुआ उजियारा,
बिखरी उसकी छटा तो छंट गया , मानव के घर का अँधियारा ।
चलता गया आगे को मानव , पाकर फिर आयाम नए,
रोक पाए न उसको कोई , चाहे जितने जतन किए ।
बढ़ते कदमों के जरिए ही , पाया उसने टेलीफोन ,
पाती की थाती ना थी अब , अब आए मोबाईल फोन ।
थमी नहीं रफ्तार अभी भी , घर आया टेलीविजन ,
घर बैठे बैठे ही देखा , इस दुनिया का हर रंग ।
कल तक मानव बैठ चौपाल पर ,अपनी पंचायत लगाता था,
आज दूर- दूर देशों के , हाल जानता मानव है ।
लाया मानव कम्प्यूटर भी , इंटरनेट की खोज करी,
छोटे से स्क्रीन पर उसने , देखी अपनी दुनिया पूरी ।
कल परसों की नन्हीं दुनिया ,बनी आज संसार विशाल,
जीवन पथ पर आगे बढ़ते , पीछे छूटा कल का हाल ।
उङता ऊंचे नभ में हरदम , गगन पास में दिखता है,
ऊपर उङते काले बदरा , अब हाथों से छूता है ।
चांद के रथ पर बैठ के मानव , तारों के झुरमुट गिनता है,
सूरज की किरणों से ही वह , अपने सपनों को सिलता है ।
बदरा की चमकीली दामिनी , घर में चमकन दिखलाती है,
रंगों की छटा बिखरा आंगन में ,इन्द्रधनुष छिटकाती है ।
पग पग चलने वाला मानव , पहिए पर आगे बढ़ता है ,
सीढ़ी दर सीढ़ी नहीं चढ़ेगा , लिफ्ट में सीधे चढ़ता है ।
रूक पाए ना अब भी वह तो , आगे बढ़ता जाएगा ,
पाएगा आयाम नए वह , अपनी मंजिल आप बनाएगा ।
मानव की मंजिल पता नहीं , है दूर कहां अनजानी ओर,
कब पाएगा मानव उसको , पकङे अपनी उम्मीदी डोर ।
आगे आने वाली दुनिया , देखेगी और भी नये रंग,
शायद ये मानव ही चल दे , लेकर नए संग और ढंग ।
रफ्तार बढ़ी है मानव की ,तो दुनिया भी संग दौङ चली ,
भूली दुनिया पिछला पन्ना , अगला अध्याय जोङ चली ।
आने वाला कल मानव का , क्या रंग नए दिखलाएगा ,
सतरंगा इन्द्रधनुष क्या अब ,अधिक रंग बिखराएगा ।
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