पुकारा है
पुकारा है तुम्हे सावन के झूलों ने,
चले आओ ।
बहुत दिन हो चुके बिछुङे मेरे साजन,चले आओ ।
जिधर देखूँ उधर तुम हो ,
मेरी नज़रों का धोखा है ,
ये सारी दूरियाँ सिमटाने को मेरे साजन ,
चले आओे ।
रूको न तुम कहीं भी अब ,
कि ये धङकन ही रूक जाए ,
मेरी धङकन जगाने को मेरे साजन ,
चले आओे ।
ये सावन का महीना तो ,
मिलन का ही तो मौसम है ,
ये मौसम बीतने से पहले ही मेरे साजन ,
चले आओे ।
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