Thursday, March 3, 2011

MAIN KAUN

                        'मैं कौन'
      -   वर्षा  की बूँद हूँ ,ले चली बयार जिसे ,
           अनजाने पथ की ओर  ,
           कैद हुई अंधेरे में , न जाने कितना समय बीता ,
           हुआ रूप परिवर्तित  ,
           अचानक छँटा अँधकार ,एक स्वर गूँजा ,
           अरे ! कितना सुन्दर मोती ।
-       विलीन जल  कण सी ,
 हवा के साथ - साथ , कभी इधर,कभी इधर ,
 स्पर्श  मिला एक गुलाब का ,
 शीतल स्पर्श  पा , बदला मेरा रूप ,
परिवर्तित  बूँद ठहरी वहीं पर ,
 उगते सूरज की रिश्मयों ने, झिलमिलाया मुझे ,
 तभी मिला स्पर्श  किसी के अधरों का ,
 ज़ज्ब हुई उन्हीं अधरों पर ,
          सुनाई दिया -
       आह ! कितनी शीतल ये ओस  की बूँद ।
   -   चाँदनी चाँद की ,
       रात के अंधकार को चीरती , पहुँची धरा पर ,
       दूध में नहा गई धरा , जगमगा उठी रात भी ,
       चकोर ठहर गया वहीं ,
       चाँद को निहारता , चाँदनी में नहाता ।
  -    धूप का एक टुकङा , सदिर्यों की दोपहरी ,
      बर्फ  से ढकी, शीतलता ओढ़े  ,
       मिला जो साथ मेरा ,
       जीवंत हो उठा दिन ,
       आयी एक ताजगी , सोती - अलसाती नींद में ।
-    गुलमोहर का एक फूल ,
 गमिर्यों के दिन , लू के थपेङे ,
 पसीना बहाते मानव , फिर भी काम करते ,
 ऐसे में गुलमोहर फूला ,
 फूलों के रंग से, वातावरण खिल उठा ,
 गर्मी   का अहसास कुछ कम हुआ ,
 लू के थपेङे कुछ कम लगे ,
 पसीना भी ठंडा लगा, मानव के हाथ तेज चल

No comments:

Post a Comment