'मेरी बेटी '
बादल छाया फिर से जीवन की इस धूप में,पाया मैंने बचपन अपना बेटी के इस रूप में ।
तुतलाते शब्दों में मैं ही तो तुतलाती,
बार - बार ही एक बात को,
मैं ही तो दोहराती ,
खेल - खिलौने इधर - उधर को,
मैं ही तो बिखराती,
गुङिया को निन्नी - निन्नी कह,
मैं ही तो सुलाती,
जीवन मधुर गीत हो चला ,
दुःख को भूल चली मैं ,
पाया मैंने बचपन ------- |
पायल पहने चलती ,
घर में गूँजे छम - छम ,
कोई खिलौना हाथ में ले के ,
मुँह से बोले पम - पम ,
कभी झुनझुना बजा रही है,
कभी बैट को घुमा रही है,
और कभी जब देखूँ उसको,
बिन्दी मेरी लगा रही है,
मम्मी -मम्मी ,पापा - पापा ,
और कभी जब देखूँ उसको,
बिन्दी मेरी लगा रही है,
मम्मी -मम्मी ,पापा - पापा ,
कहती मधुर स्वरों में ,
पाया मैंने बचपन ----- |
पढ़ना -लिखना लगी सीखने ,
नई किताबें लाती ,
और कभी पेन्सिल को लेकर ,
नए - नए चित्र बनाती ,
तुतलाते शब्दों में ही,
सारी किताब पढ़ जाती ,
टेढ़ी -सीधी लाइन बना कर ,
चिट्ठी भी लिख जाती ,
जीवन इतना प्यारा होगा ,
ये ना सोच सकी मैं,
पाया मैंने बचपन अपना बेटी के इस रूप में ।
ये ना सोच सकी मैं,
पाया मैंने बचपन अपना बेटी के इस रूप में ।
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