ग्रह ब्रह्मांड का
रचेता ने जब ब्रह्मांड बनाया ,
छोटी -बड़ी गेंदों को बनाकर ,
स्वयं रचेता खेल करे |
कुछ में उसने भरा प्रकाश ,
अलग -अलग उछाल दिया उनको ,
बाकि गेंदें ले लें प्रकाश ,
उनके इर्द -गिर्द घूमकर |
कहीं -कहीं जीवन उपजाया ,
एक हमारी पृथ्वी मित्रों ,
अन्य ऐसी हैं कितनी पृथ्वियाँ ?
उनको नहीं हम जानते ,
उनको नहीं पहचानते |
अपनी पृथ्वी पर सब कुछ है ,
दिया रचेता ने भरपूर ,
मानव लाभ उठाता सबका ,
जीवन खुशियों से भरपूर |
कभी अगर मानव बढ़ पाए ,
दूर ग्रह का पता लगाए ,
वहाँ अगर जीवन पनपा हो ,
वहाँ के रहने वालों को ,
अपना दोस्त बनाए ,
तभी तो रचेता भी मुस्काएगा |
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