नन्हें -मुन्ने से ख़्वाब
ख़्वाब नहीं ऊँचे अपने ,सच्चे हैं जो थे सपने ,
छोटे -छोटे ख़्वाबों से ,भरी हुई थी जिंदगी ,
आज वो सब साकार हुए ,कल तक थे जो सिर्फ सपने |
नहीं रूठने दिया है हमने ,नन्हे -मुन्ने ख़्वाबों को ,
जित उसी की होती है ,करता जो पूरे ख़्वाबों को ,
इस जीवन में जीते हम ,आगे की ईश्वर जाने ,
क्यों सोचें हम कैसे -कैसे ,करलें पूरा ख़्वाबों को ?
दुःख -सुख आते जीवन में ,क्यों ख़्वाबों को जाने दें ?
तपती हुई जिंदगी में ,ख़्वाबों की हवा तो आने दें ,
नन्हीं -नन्हीं खुशियों से ,जीवन को सज जाने दें ,
इंद्रधनुष के रंगों को ,जीवन में भर जाने दें |
नहीं ख़्वाब सोते देखे ,खुली आँख भी देखे हैं ,
ऐसे ही हमारी तो मित्रों ,सागर से बातें होती हैं ,
चंदा तो अपना सखा है मित्रों ,बरखा भी सहेली है ,
पौधों -फूलों के संग तो किटी पार्टी होती है |
सभी दोस्त हैं अपने मित्रों ,सभी तो शामिल होते हैं ,
सभी बाँटते खुशियाँ हैं ,खूब ठहाके होते हैं |
No comments:
Post a Comment