Friday, September 4, 2020

PRAKRITI (PRERAK KATHA )

                         प्रकृति 


सुंदर -सुंदर एक सखि ,जिसका नाम प्रकृति ,

रिमझिम बदरा सी बरसती ,कड़क दामिनी सी चमकती | 


पवन की है वो तो हमजोली ,बदरा संग करती है खेली ,

बरसे रिमझिम सी फुहार ,कभी -कभी मूसलाधार | 


जल बह कर नदिया में जाए ,नदिया कल -कल करती जाए ,

मचल -मचल कर नदिया जाए ,सागर में जाकर मिल जाए | 


सागर तो रहता है शांत ,पर चंचला उसकी लहरें ,

देशों की सीमा पर जैसे ,सागर तो देता है पहरे | 


नीचे है सागर विशाल ,ऊपर बड़े -बड़े पहाड़ ,

दोनों ही हैं फैले ऐसे ,बड़े से पहरेदार हों जैसे | 


दोनों ही में अलग है दुनिया ,सागर तो रत्नों की खान ,

अनगिनत जीव और रत्न ,तभी तो रत्नाकर कहलाए | 


पहाड़ों में जंगल हैं सजते ,जिनके अंदर जीव हैं बसते ,

उन जीवों का वही है घर ,जीवों से जंगल सुंदर | 


जंगलों से हम हैं ,सब कुछ हमको हासिल है ,

अनमोल ख़ज़ाने प्रकृति के ,दुनिया में अपनी शामिल हैं | 


सब कुछ हमें प्रकृति देती ,ख़ज़ानों से झोली भर देती ,

सभी आराम इसी से मिलता ,तभी तो अपना जीवन खिलता | 


बदले में हम क्या देते हैं ,एक वादा दे सकते हैं ,

प्रकृति को विनाशित नहीं होने देंगे ,नहीं होने देंगे | 


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